कर देतें है कोख में,…बेटी का संहार
कर देतें है कोख में,…बेटी का संहार !
खतरे में दिखने लगा, बहनों का त्यौहार !!
क्यों ना उन्नत शीश हो, क्यों ना होवे नाम !
कर जायें जब बेटियाँ,….बेटों वाले काम !!
लड़े शेरनी की तरह,….पूरा करें प्रयास !
ओलम्पिक में रच रही, बेटी भी इतिहास !!
मरवा डाला कोख मे,बेटी को हर बार !
ढूढ रहा नवरात्र मे,कन्या को हर द्वार !!
उत्तरदायी कौन है,…..किसकी है ये भूल !
सिमटी हैं कलियाँ अगर, खिले नहीं हैं फूल !!
रमेश शर्मा