कर तूने जो ठाना है।
थक कर कैसे बैठ गया तू
कर तूने जो ठाना है
नहीं मिली है मंजिल तेरी
लक्ष्य अभी अनजाना है
माना कि बाधाएँ बहुत हैं
दुश्मन सारा जमाना है
पर तुझको सब बैर भुलाकर
सब को गले लगाना है
हिन्दू-मुस्लिम, ब्राह्मण-क्षत्रिय
जाति-धर्म भी नाना है
ऊँच-नीच का भेद खत्मकर
मानव धर्म निभाना है
मेहनत की सब हदें पारकर
तूफ़ां से टकराना है
सारे सपनों को सच करके
अब इतिहास बनाना है।
– मानसी पाल “मन्सू”
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