कर जाते दल-बदल वो
दोहा
कर जाते दल बदल वो, टिकट कटे जिस रोज।
सत्ता के सुख के लिए, रहे नया दल खोज।।
मिले टिकट औलाद को, राज्यपाल हो आप।
वंशवाद की जकड़ ने, करवाए सब पाप।।
सत्ता सुख की लालसा, पाले फिरते लोग।
कुर्सी ही उपचार है, लगा सियासी रोग।।
सुरा सुंदरी भोग कर, करें टिकट की बात।
सूटकेस नोटों भरे, तभी मिले सौगात।।
सत्ता सुख को भोग कर, भ्रष्ट हुए आचार।
दागों से खादी सनी, चहूंओर तकरार।।
वादे सारे भूल कर, रहा रचाता रास।
सता रहा डर हार का, डोल रहा विश्वास।।
‘सिल्ला’ भी है मांगता, राज-काज में सीर।
राज-काज से दूर रह, भोग रहा है पीर।।
-विनोद सिल्ला