कर्म
छाँव की कीमत तब होती जब धूप निकट हो यार।
आज तो इन्सानो के भावो का भी सज़ने लगा बाज़ार।।
कर्म की गति है अजब,लौट के आ ही जाती है ।
समझ मे तुम को तब आता है जब जिन्दगी ठोकर खाती है ।।
ना किसी की मर्यादा रखी ना रक्खा मान ।
प्रतिफल मे तुमको चाहे अब धन दौलत और सम्मान।।
विवेक शुन्य होकर , जीवन को बरबाद किया।
कर्म के घेरे ऐसे है,फिर कर्म ने ही प्रतिकार लिया।
हे मानव अब भी संभल, शायद कुछ हो जाये
कर्म कर इतना तू की पत्थर से पानी आ जाये।।