कर्म
कौन देखता है बार बार
यही सोच कर हर बार
इन्सान कर लेता है गुनाह कई बार
पड़ जाती है जब कर्मो की मार
पहुंच जाता है प्रभु के दरबार
हाथ जोड़ कर लगाता है गुहार
क्षमा के लिए करता है पुकार
बख्श दे बन्दे को इस बार
कर ले जबान पे ऐतबार
न कर अपने वज्र का प्रहार
त्याग देते हैं प्रभु दण्ड का विचार
क्षमा कर देते हैं फिर पालनहार
आ जाता है जो उनके द्वार
भर देते हैं झोलियां बेशुमार
शरणागत का कर देते हैं बेड़ा पार ।।
राज विग