कर्म ही पूजा है ।
कर्म ही पूजा,
फिर नही कोई दूजा,
कर्म ही धर्म,
फिर नही कोई शर्म,
कर्म से जुड़े रिश्ते,
फिर मिलते फरिश्ते,
कर्म ही प्रधान,
फिर नही कोई समान,
कर्म सेवा है,
फिर मिलती मेवा है
कर्म ज्ञान है,
फिर नही अज्ञान है,
कर्म राह है,
फिर नही चाह है,
कर्म सुबह है,
फिर नही शाम है,
कर्म सुलह है,
फिर नही विरह है,
कर्म शांति है,
फिर नही अशांति है,
कर्म ही भगवान है,
फिर नही वरदान है,
कर्म ही अंतर्मन है,
फिर नही बाह्य मन है,
कर्म ही गंगा है,
फिर नही दंगा है,
कर्म ही प्रसून है,
फिर नही शून्य है,
कर्म सम्मान है,
फिर नही अपमान है,
कर्म करते हो,
फिर क्यों डरते हो,
।।जेपीएल।।।