कर्म-पथ से ना डिगे वह आर्य है।
सजग कर दे राष्ट्र को आचार्य है ।
गुरु वही जो आत्मपथमय कार्य है ।
रीढ ,वह ही लोक की बनता सदा।
कर्म-पथ से ना डिगे वह आर्य है ।
…………………………………..
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक “कृतियों के प्रणेता
● उक्त मुक्तक को “पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाए” कृति के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत किया गया है।
●”पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाए” कृति का द्वितीय संस्करण काव्य संग्रह के रूप में अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।