कर्म का योग
कर्म रहित जीवन नहीं,
जी न सकता कोय।
कर्म बन्धन के कारण,
जीवन – मरण गति होय।।
कर्म से दुःख होत हैं,
कर्म से मुक्ति होय ।।
कर्म बन्धन से ही छूटने,
गीता मे कहा गया कर्मयोग।।
मुख्यतः छै सिद्धांत ही,
गीता मे बताये है।
बन्धन से त्राण होने,
श्रीकृष्ण स्वयं गाये है।।
आसक्ति का त्याग है,
प्रथम कर्म सिद्धांत ।
ज्यो हाथों तेल मल,
कटहल काटे नितांत।।
दूसर राग-द्वेष का त्यागन,
प्रीत -बैर सम जान।
कर्तापन के त्याग से,
नहीं बढ़ता अभिमान।।
चतुर्थ समत्व के भाव से,
समता बढे़ सम्मान।
पंचम कुशलता का आचरण,
कर्म मर्म का हो ज्ञान।।
कर्मो का ह़ो समर्पण,
प्रभु चरणों का स्मरण।।
कर्मयोग की साधना,
कर्म बन्धन से मिलें त्राण।।