कर्मों के हैं खेल निराले
कर्मों के हैं खेल निराले, जो चाहे अपना ले
जैसा वोए वैसा काटे, जो चाहे फसल लगा ले
कर्मों के हैं खेल निराले, जो चाहे अपना ले
कर्म ही हैं सुख-दुख के कारक, कर्म बंधनों वाले
कर्म ही मुक्ति देते जग से, सब कुछ कर्म हवाले
कर्मों के हैं खेल निराले, जो चाहे अपना ले
कर्म से उठ सकते हो ऊपर, कर्म गर्त में डालें
कर्म से ही मिलती है शोहरत, बदनामी भी पाले
कर्मों के खेल निराले, जो चाहे अपना ले
कर्म से वंदित कर्म से निंदित, कर्म हैं धर्म अधर्म वाले
वंदित होते हैं सदा सुकर्म, निंदित कर्म काले काले
कर्मों के हैं खेल निराले, जो चाहे अपना ले
मानवता के हित ईश्वर ने, गुण अवगुण कह डाले
मानवता के खातिर ही, सामाजिक नियम बना डाले
वेद पुराण कुरान बाइबल, गुरुग्रंथ और गीता रच डाले
कर्मों के खेल निराले, जो चाहे अपना ले
सुरेश कुमार चतुर्वेदी