कर्मशील पथिक की आशा
हताशा का बादल
कभी तो हटेगा
कभी तो नौका
किनारे लगेगी
भँवर में अटकी है नैया
कभी तो माँझी समतल बहेगी ।
लक्ष्य की मंजिल दूर भले है
धैर्य का सारथी
आगे बढ़ता रहेगा
आँखों की रोशनी
दगा करेगी
ईमान का घूँट
दम भरता रहेगा ।
कठिन सफर है
दोखा और नफरत का
फैला जहर है
भावुक हृदय और
कायर नवज को
मंजिल का लक्ष्य
नियंत्रित करेगा ।
उद्वेलित मन
पथ भ्रमित करेगा
भुजाएँ थकेंगी
आँखों में आंसू भरेगा
अमावस के अँधेरे में
चमकते है जुगनू
इसी विस्वास में पथिक
आगे बढ़ता रहेगा ।
बदलता है मोसम
बदलता है जीवन
कभी तो ईस्वर
हम पर भी दया करेगा
भरेंगे बादल
बारिश करेंगे
हरा भरा रंग
जीवन में खुशियाँ भरेगा ।।।
प्रशांत सोलंकी
नई दिल्ली-07