कर्मफल
सबको मिलता कर्मफल, राजा हो या रंक।
राजपाट सब हारकर, बने युधिष्ठिर कंक।
बने युधिष्ठिर कंक, ठाठ मिल गए धूल में।
पंकज थे अब पंक, कर्म की एक भूल में।
कह संजय कविराय, फ़टी ना कोई सिलता।
भैया बापू माय, कर्मफल सबको मिलता।
संजय नारायण
सबको मिलता कर्मफल, राजा हो या रंक।
राजपाट सब हारकर, बने युधिष्ठिर कंक।
बने युधिष्ठिर कंक, ठाठ मिल गए धूल में।
पंकज थे अब पंक, कर्म की एक भूल में।
कह संजय कविराय, फ़टी ना कोई सिलता।
भैया बापू माय, कर्मफल सबको मिलता।
संजय नारायण