कर्मठ कहाँ रुक पाता है,
कर्मठ कहाँ रुक पाता है, कर्मठ कहाँ रुक पाता है,
राह है काँटों भरी, नंगे पाओं है चलना , जानते हुए भी चलता जाता है , कर्मठ कहाँ रुक पाता है, श्रेय हमेशा दूसरे ले जाएंगे, सब जानते हुए भी मुस्कुराता है, कर्मठ कहाँ रुक पाता है ,आलोचनाएं है हर पल साथी, आलोचनाओं का जहर हस कर पी जाता है , कर्मठ कहाँ रुक पाता है , लोगो के फेंके पत्थरों का वो,महल बनाता जाता है , कर्मठ कहाँ रुक पाता है , इरादे मजबूत हो तो वक्त बदल ही जाता है,दुनिया कब किसकी सगी हुई है?एक एक के चेहरे वो पहचानता जाता है, कर्मठ कहाँ रुक पाता है, कर्मठ कहाँ रुक पाता है …..