कर्मगति
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कर्मप्रधान यथार्थ के धरातल पर सफलता सुनिश्चित होती है ,
कर्मविहीन अभिलाषाओं एवं आकांक्षाओं की परिणति निराशा में होती है ,
माया का चक्रजाल लालसा एवं लोलुपता को जन्म देता है ,
जिसमें उलझा हुआ मानव इच्छाओं के भंवर में फँसकर वैचारिक गुलाम बनता है,
नीति एवं अनीति के अंतर को समझने में असमर्थ रहता है,
संस्कारों एवं आदर्शों की आहुति देकर अधोगति के पथ पर अग्रसर होता है ,
वासनाओं एवं व्यसनों की मृगतृष्णा से दिग्भ्रमित अंधकारमय जीवन निर्वाह बाध्य होता है,