कर्बला की मिट्टी
कर्बला की मिट्टी
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संयोग से इस साल कुछ सालों के बाद मुहर्रम के अवसर पर घर पर ही था। मुहर्रम में प्रत्येक वर्ष बड़े शान से ताजिया का आगमन हमारे दरवाजे पर जुलूस के साथ होता है और बड़े श्रद्धा भाव के साथ माॅं के द्वारा हिन्दू रीति से ताजिया का चुमान कर सम्मान के साथ ताजिया को विदा किया जाता है। इस दौरान लोगों के द्वारा तरह तरह के खेल का प्रर्दशन किया जाता है,जिसे देखने के लिए काफी संख्या में लोगों की भीड़ दरवाजे पर जमी रहती है।
बचपन में ताजिया के दरवाजे पर आने के निर्धारित समय से दो घंटा पहले से ही हमलोग पूर्ण उत्तेजना में रहते थे। मुस्लिम टोला की महिलाएं एक घंटा पहले से ही हमारे ऑंगन में आ जाती थी। पूरा गहमा गहमी का माहौल रहता था। दूसरे धर्म को मानने के बाद भी थोड़ी देर के लिए हमलोग भी इस पर्व का अभिन्न हिस्सा बन जाते थे। इस बार जब ताजिया को आते देखा तो बचपन की बात सहसा याद आ गई। पहले वाले जोश का अभाव दिख रहा था और हुड़दंग कुछ ज्यादा था। जुलूस पहले की तरह अनुशासित नहीं दिख रही थी। जिस तरह सेनापति की अनुपस्थिति में एक सेना का जो हाल होता है, कमोवेश बिल्कुल वही स्थिति थी।
ताजिया के आते ही खास करके हमें हमारे गाॅंव के घोतन चाचा जो अब इस दुनिया में नहीं हैं की बरबस याद आ जाती है। ताजिया का उत्साहित और अनुशासित जुलूस पहले उन्हीं के निर्देशन में निकलता था और बाद के दिनों में शेख हनीफ चाचा एवं शेख सनीफ चाचा (अब ये दोनों भी इस दुनिया में नहीं हैं) के सहयोगात्मक सम्मिलित नेतृत्व में भी अनुशासित जुलूस की गरिमा बरकरार रही। दरवाजे पर पहुॅंचने के बाद लूंगी और हाफ गंजी पहने हुए पसीने से लथपथ घोतन चाचा अपने कंधे पर से अपना पसीने से भींगा हुआ कुर्त्ता उतार कर कुर्त्ते की जेब में रखे कागज की पुड़िया में रखी हुई कर्बला की मिट्टी निकाल कर मेरी दादी माॅं को देते थे। हम लोगों के लिए ये किसी अजूबा से कम नहीं था। दादी माॅं बड़े श्रद्धा से उस मिट्टी को रखती थी और बाद में अगर घर में कोई बीमार पड़ता था या किसी को किसी तरह की कोई परेशानी होती थी तो कर्बला की उसी मिट्टी को इस विश्वास से सर पर मल देती थी कि इस पवित्र मिट्टी के लेप से शीघ्र ही लाभ होगा। अभी भी कर्बला की मिट्टी घोतन चाचा के बेटा के द्वारा दिया जाता है।
अब गाॅंव के युवा वर्ग के बहुत लोगों का रोजगार के क्रम में गाॅंव से बाहर रहना और एकल नेतृत्व का अभाव या फिर कुछ लोगों का शायद तटस्थ रहने का सीधा प्रभाव इस पर्व पर देखा जा सकता है।