कर्त्तव्य
कर्त्तव्य
जिस मातृवक्ष से चिपक
किलक दिखलाया
जीवन पाया
शैशव रहा मचलता है
आज वही
पुत्र का फ़र्ज निभा रहा है
दूध का कर्ज यूँ चुका रहा है
भौतिकता के वशीभूत
कर्त्तव्यविमूढ
उसी वक्ष को
तानों से छलता है
मातृवक्ष में ममत्व
अब भी फलता है
कर्त्तव्य, कब-कब
कैसे रूप बदलता है?
-©नवल किशोर सिंह