कर्त्तव्य बोध
है कर्तव्य पथ
निर्मित विधि द्वारा
चलना है जीवन पर्यन्त
प्राणी को चलना है अनवरत
बिन कर्त्तव्य से हुए विमुख
शिशु का है अधिकार
कि माता उसकी क्षुधा मिटाए
कर्तव्य भी है संग-संग चलता
न मिले दुग्ध बिन रोए चिल्लाए
सुख-दुख निश-दिन तम हो या उजास
जल-थल हो या हो आकाश
यदि वर्चस्व या विजय दुंदुभी
का अधिकारी बनना है
कर्म और कर्तव्य पथ पर
थाम सत्य को चलना है।
विस्मृत कर यदि कर्तव्यों को
तुम तृष्णा पाने की करोगे
कुछ भी हो न सकेगा हासिल
कर्मफल का भुगतान भरोगे
यह हैं एक सिक्के के दो पहलू
चोली-दामन का-सा साथ
प्रथम बनें कर्तव्य के साधक
तब करें अधिकारों की बात।
कर्त्तव्य निर्वहन में
सन्निहित कर्म व अकर्म का ज्ञान है।
उसका जीवन ही अपूर्ण
जो कर्तव्यों से अनजान है।
कर्त्तव्यों पर टिकी वसुंधरा धुरी पर लेती अपनी गति।
उस पर टिकी है सारी सृष्टि
कर्तव्य निभाती है
प्रकृति।
धरती और कुदरत से सीखो
फर्ज से कभी न हो विमुख।।
गीता का संदेश भी कहता कर कर्तव्य तू पाल न दुख।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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