कर्ण का शौर्य
कोई नहीं भुवन में मुझसा
कोई नहीं धनुर्धर है बाकी ।
कौन समक्ष ये आ गया है
जल रहा अग्नि की भांति ।।1।।
जिन भुजाओं में ये पराक्रम
कोटि सूर्य–सा दमक रहा ।
कौन सामने खड़ा है माधव
अग्नि सूर्य सा धधक रहा ।।2।।
कैसा प्रलय मचा दिया है रण में
ऐसा कौन ये धनुर्धर है बाकी ।
जिसके धनुष की टंकरों से
उठ पड़े तप की सन्यासी ।।3।।
ले जाओ समक्ष रथ को माधव
हो गया हूं युद्ध का अभिलाषी ।
आज लगता है,रण में बस
बचेगा एक धनुर्धर ही बाकी ।।4।।