कर्ण का धर्मसंकट
हां केशव,
दे रहा था मैं साथ दुराचार का,
दे रहा था मैं साथ अन्याय का,
लौग कहेंगे मुझे दुराचारी,
पर क्या मेरे साथ हुआ था न्याय,
जन्म लेते मां ने छोड़ दिया,
क्षत्रिय होकर भी, सुत पुत्र में कहेलाया,
क्यो माधव,
तब कहां थे आप?
जब हो रहा था अपमान मेरा,
मेरी जननी ने पहेचान लिया मुझे,
फिर भी एक शब्द ना बोली,
क्यो गोविंद,
तब कहां गया था सन्हे उनका?
कहो द्वारकाधीश,
कैसे छोङु दु साथ उस मित्र का,
जिसने मुझे मान दिया,
जिने का सम्मान दिया,
कैसे मुरारी,
कैसे छोङु दु साथ उस मां का,
रात भर जाग कर मुझे सुलाया,
कैसे छोङु साथ उस पिता,
जब है उन्हें जरुरत मेरी,
अब जब मैं खङा बबन्डर में,
तब आये माधव , मुझे राज बताने,
अब तो डाला धर्मसंकट में आपने,
कैसे मार दूं अपने अनुजो को?
जानते हूं मैं ,
वे चल रहे सही राह पर,
पर अब मजवुर मैं,
कैसे सामना करु,
धर्म राज, भीम , अर्जुन का,
कैसे केशव कैसे,
कैसे मैं जीऊं इस दुनिया में,
ना करूं युद्ध तो लोग नमक हराम कहेंगे,
गाली देंगे मेरे जननी को,
हाथ उठाऊं तो,लोग मुझे राक्षस कहेंगे,
पर गर्व से जीएगीं मेरी मां,
कैसे केशव,
कैसे मुख दिखाऊं उस पांचाली को,
जो थी पुत्री समान मेरी,
पर किया था मैंने अपमान उसका,
केशव ,
किस धर्मसंकट में डाल दिया मुझे,
किस झंझट में डाला मुझे,
कैसे करूं सामना इस दुनिया से??
क्या उत्तर है आपके पास?
कहो माधव कहो,
उत्तर दो हमें,
दिखाओ राह हमें,