कर्ज
कर्ज़
हर किसी को आशा की एक किरण की चाह होती है, काली रात सा हर एक दिन बन जाता है, जब कोई कर्ज में डूबता है।
नहीं डूबता है हर कोई कोई कर्ज में ऐसे ही,
कोई विदा करता है बेटी कर्ज में कोई लेकर कर्ज बेटे को विदेश भेज देता है, कोई शिक्षा दिल वादा कर्ज में है, नहीं डूबता कोई कर्ज में ऐसे ही।
हर दिन मेहनत करके ,रात दिन पाई पाई सबकी वापस करता है, कर्ज में डूबा इंसान कई बार भूखे पेट ही सो जाता है।
हर रात डायन बनके डसती है ,उठ उठ कर चिंता यही सताती है, आज इतना वापस किया कल इतना वापिस करना है ,कल इतना वापस करना है, कर्ज में डूबे इंसान को यही चिंता सताती है।
गरीब और कर्ज का है ,बड़ा ही पुराना नाता एक साथ क्यों नहीं बना देता तू सबको विधाता।।
✍️ वंदना ठाकुर ✍️