करो बचाव मगर वार भी ज़रूरी है
ग़ज़ल
करो बचाव मगर वार भी ज़रूरी है।
है हाथ ढाल तो तलवार भी ज़रूरी है।।
दिलों के बीच जो दीवार हो गयी हो खड़ी।
तो फिर मकान में दीवार भी ज़रूरी है।।
ग़मो का बोझ उठाना भी तब सरल होगा।
जो ग़म हो जीस्त में ग़मख़्वार भी ज़रूरी है।।
हर एक दिन तो मुकर्रर है काम को लेकिन।
सुकून के लिए इतवार भी ज़रूरी है।।
भले ही लाख ज़माना हो साथ में अपने ।
पर अपने साथ ये परिवार भी ज़रूरी है।।
अनीस” पार अगर करना है तुझे दरिया।
तो साथ कश्ती के पतवार भी जरूरी है।।
– अनीस शाह” अनीस “