करीब हो तुम मगर
करीब हो तुम मेरे,मगर कुरबत तो नहीं है।
तुम्हे मुझसे पहली सी मोहब्बत तो नहीं है।
यूँ बार बार तेरा मेरा,बिछड़ना और मिलना
खुदा की कोई इसमें हिदायत तो नहीं है।
मशरिक और मगरिब के मुझे किस्से सुनाना
सोचती हूँ ये कोई सियासत तो नहीं है।
बेसाख्ता बातें होने लगी बातें जो वफा की
मुझे दी जा रही कोई नसीहत तो नहीं है।
खामोशी से बैठे है, आंचल हम तो फैलाये
तू मिल जाए मुझे ऐसी किस्मत तो नहीं है।
सुरिंदर कौर