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9 Jun 2020 · 1 min read

करिये समीक्षा

करिये समीक्षा आप अपने कर्म की।
छोड़िये पूर्वाग्रह दुराग्रह,
बात समझिये मर्म की।
क्या क्या हुईं उपलब्धियां,
कितनी बढ़ीं परिलब्धियां।
बताते हैं औरों का हासिल अपना,
बात है यह शर्म की।
क्या पितृ ऋण से हुए उऋण,
कितना चुकाया राष्ट्र ऋण?
क्या आपने कभी करी भर्त्सना,
देश भक्ति छद्म की।
क्या सामाजिक दायित्व पूरा किया,
भटकों को उद्बोधन दिया?
क्या करी विरोध में आवाज बुलंद,
नारी से दुष्कर्म की।
आप अपने आप में रहे मस्त,
बने रहे रंगीनियों के अभ्यस्त।
नहीं किसी के दुख से विगलित हुए,
नहीं निभाई परम्परा मानवता के धर्म की।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Language: Hindi
3 Likes · 413 Views
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