*करिए कुछ करिए*
करिए करिए मुलाज़िम,जमुरियत के लिए कुछ तो करिए।
मौक़ा दो संवरने का सरकार, और खुद भी सुधरिये ।।
तुम तखत पे आसीन हुए तो कुछ जिम्मेदार भी बनो
मालिक़ हो के सम्भालो तो ,और मत खुद बिगरिये ।।
लौट के जवाव देना है ,आसरों के लिए क्या किया?
वायदे सच साविती को यार ,सामना से मत मुकरिये ।।
ऊपरी पायदान से और ऊपर कहाँ जाओगे,कुछ सोचा है
हमारी भी दुआएं हैं तुमहे , पर कुछ तो नीचे उतरिये ।।
ज़मीन पे पड़ी सड़ती हैं ,वे चीखती हुयी मासुमियतें
आके बक़्त वे बक़्त आप भी, इस रास्ते से गुजरिए ।।
चाहते हो दुनिया का पहला इंसान कहलाऊँ ,मग़र
सामने ‘साहब’ गमें गरीबी में ,खुदा के लिए तो डरिये।।