करवा चौथ (लघु कथा)
लघु कथा ःकरवा चौथ
लेखक ःरवि प्रकाश ,रामपुर
शाम को दफ्तर से देर से दीपक घर आया और हमेशा की तरह सहजता के साथ मीनाक्षी ने घर का दरवाजा खोला। दोनों मुस्कुराते हुए लॉबी में पड़े हुए सोफे पर बैठ गए। फिर मीनाक्षी उठ कर गई ।चाय बना कर लाई।। साथ में कुट्टू की पकौड़ी भी थीं। दीपक ने स्वाद लेते हुए पकौड़ी खाई और चाय पी।
उसके बाद बहुत शांत भाव से मीनाक्षी ने पूछा ः”आज दोपहर वेश्याओं के कोठे पर क्या कर रहे थे”ः सुनकर दीपक का चेहरा सफेद पड़ गया। सिर पश्चाताप की मुद्रा में झुक गया । घबराकर उसने कहाः” क्या बताऊं ! मकान का वैल्यूएशन कराने के लिए वह वेश्या आई थी । कह रही थी कि काम बहुत जल्दी का है । दुगने पैसे दे रही थी। मैं उसी समय चला गया और उसने मुझे मकान का वैल्यूएशन करने के बाद तुरंत सारी रकम दे दी । इस समय मेरी जेब नोटों से भरी हुई है”।
लेकिन फिर दीपक बोला ः”मुझे शायद नहीं जाना चाहिए था वह बदनाम जगह है । पैसा ही तो सब कुछ नहीं होता।”
मीनाक्षी ने पति को सहारा देते हुए कहाः” आपको क्यों नहीं जाना चाहिए था ? आपका काम है मकानों का वैल्यूएशन करना । यह तो बिजनेस है । इसमें न जाने वाली बात कौन सी हुई।”।
तभी दीपक ने कुछ सोचते हुए कहा “लेकिन यह बताओ कि तुम्हें कैसे पता चला! कहीं विद्या बुआ ने तो यह बात नहीं बताई ? “।
मीनाक्षी बोली ःहां उन्होंने ही मुझे यह बात बताई थी ।
दीपक ने कहाः विद्या बुआ मेरे पास दोपहर को आई थीं, अपने मकान का वैल्यूएशन कराने। और उसी समय वेश्या भी आई थी। बस विद्या बुआ ने एक जासूस की तरह मेरा पीछा किया होगा और उसके बाद तुम्हारे कान भर दिये।”।
मीनाक्षी ने हंसकर कहा”- विद्या बुआ ने तो हमारी गृहस्थी को तहस-नहस करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। यह तो बस मेरा तुम्हारे ऊपर विश्वास था और तुम्हारा मेरे ऊपर इतना बड़ा विश्वास कि तुम बिना किसी हिचकिचाहट के वेश्याओं के कोठे पर चले गए और तुम्हें पता था कि तुम्हारा निर्मल हृदय है और तुम कोई गलत काम नहीं कर सकते।… चलो आओ ..अब आकाश में चंद्रमा निकल आया होगा.. करवा चौथ की पूजा भी तो करनी हैः”
दीपक ने कहाः” मेरा करवा चौथ तो तुम हो “।
मीनाक्षी ने हंसकर कहा ः”जहां विश्वास है , उसी का नाम तो करवा चौथ है ।”(समाप्त)