करवा चौथ का चांद
एकांकी शीर्षक: “करवा चौथ का चाँद”
पात्र:
1. मधु – पति, थोड़ा व्यंग्यात्मक और मजाकिया स्वभाव का।
2. सौम्या – पत्नी, करवा चौथ का व्रत रख रही है, गंभीर पर मजाक का जवाब भी देती है।
दृश्य:
(रसोई घर का दृश्य, सौम्या सजी-धजी है, हाथ में छलनी पकड़ी हुई है और आसमान में चाँद का इंतजार कर रही है। मधु हॉल में टीवी देख रहा है। सौम्या की हल्की थकी हुई आवाज सुनाई देती है।)
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सौम्या (चिड़चिड़ाते हुए):
“मधु, चाँद अभी तक निकला नहीं? कितनी देर हो गई है, भूख से जान निकली जा रही है।”
मधु (हंसते हुए):
“अरे मेरी प्यारी चाँदनी, ऐसा करो, एक बार टीवी पर ‘स्पेस चैनल’ देख लो, वहाँ जरूर कोई चाँद दिखा देंगे। वैसे भी, हम तो चाँद के इतने करीब रहते हैं, फिर तुम्हें भूख क्यों लग रही है?”
सौम्या (गुस्से को दबाते हुए):
“बहुत मजाकिया हो गए हो तुम! मैं दिन भर से भूखी हूं, और तुम यहाँ मजाक उड़ा रहे हो। करवा चौथ का मतलब तुम्हें समझ में भी आता है?”
मधु (मुस्कुराते हुए):
“समझता हूँ समझता हूँ। एक ऐसा दिन, जब तुम मुझे चाँद समझकर सारी श्रद्धा मुझ पर लुटाती हो और मैं… चाँद के निकलने का इंतजार करते हुए अपनी ‘आजादी’ की सांसे गिनता हूँ।”
सौम्या (थोड़ा चिढ़कर):
“वाह, बहुत अच्छे! तो अब मेरी श्रद्धा भी तंग करने वाली लगने लगी?”
मधु (हंसते हुए):
“नहीं रे, श्रद्धा तो तुम्हारी बेशुमार है। बस, मैं सोच रहा हूँ कि अगर साल में एक दिन तुम मेरे लिए भूखे रह सकती हो, तो साल के बाकी दिन मैं क्या करता हूँ?”
सौम्या (चिढ़कर):
“ओहो! अब ये मत कहना कि बाकी दिन तुम मेरे लिए व्रत रखते हो!”
मधु (मजाक करते हुए):
“अरे नहीं! मैं तो सोच रहा हूँ कि बाकी दिन तुम ही तो मुझे भूखा मारती हो। न सुबह की चाय, न रात का खाना टाइम पर मिलता है। आज कम से कम इस बहाने थोड़ा राज कर लूँ।”
सौम्या (हंसते हुए):
“देखो, चाँद ना निकला तो तुम्हें तो पूरा हफ्ता भूखा रहना पड़ेगा।”
मधु (झूठा गंभीर होकर):
“अरे बाबा! चाँद की इतनी शिकायत मत करो, वो बेचारा भी सोचेगा कि इतनी प्यारी पत्नी रखने वाले आदमी का पेट तो पहले ही मेरी कसमों से भरा है, अब और क्या खिलाऊं!”
सौम्या (हल्के गुस्से में):
“सुनो, तुम्हारे बिना कुछ कहे भी मैं समझ जाती हूँ कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है। चाँद को दोष देना बंद करो और बाहर जाकर देखो, चाँद निकला कि नहीं।”
मधु (मुस्कुराते हुए):
“अरे, चाँद की चिंता छोड़ो, मैं हूँ ना! वैसे भी, तुमसे बेहतर चाँदनी इस घर में और कहाँ मिल सकती है?”
सौम्या (मुस्कुराते हुए):
“बातें बनानी कोई तुमसे सीखे। पर अब बाहर जाओ और असली चाँद ढूंढो।”
मधु (बाहर जाते हुए):
“ठीक है, जा रहा हूँ, जा रहा हूँ! वैसे, अगर चाँद न मिले तो तुम मुझे ही देख लो, दिन भर से तो मैं भी तुम्हारे लिए ही चमक रहा हूँ।”
(मधु बाहर जाता है और कुछ ही देर में वापस आता है।)
मधु (जोर से):
“चाँद निकल आया! और वो भी पूरा चमचमाता हुआ!”
सौम्या (खुश होकर):
“अच्छा! चलो फिर जल्दी करो, अब तुम्हारा चेहरा देखना है।”
(दोनों बाहर जाते हैं, सौम्या छलनी से चाँद और फिर मधु का चेहरा देखती है।)
सौम्या (मुस्कुराते हुए):
“देखा, मेरे चाँद की रौनक तुम्हारे सामने फीकी पड़ गई!”
मधु (हंसते हुए):
“अरे हाँ, मैं तो कह रहा था कि मुझे देखकर ही तुम्हारा व्रत पूरा हो जाएगा!”
सौम्या (मुस्कुराते हुए):
“हां हां, तुम ही सबसे बड़े हो, अब चलो खाना खाओ।”
मधु (मजाक में):
“अरे! अब तो डर लगने लगा है, इतनी जल्दी क्यों खिला रही हो, क्या फिर से व्रत रखने वाली हो?”
सौम्या (हंसते हुए):
“नहीं, अब तुम्हें लंबा जीना है, और मुझे भी।”
(दोनों हंसते हुए अंदर जाते हैं और एक-दूसरे की हंसी-मजाक भरी बातचीत के साथ करवा चौथ की रात का आनंद लेते हैं।)
(पर्दा गिरता है)
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समाप्त
कलम घिसाई
9664404242