करवा चौथ का चांद( करवा चौथ विशेष )
क्या तुम इस बार समय पर ,
पूरे नियम के साथ निकलोगे ?
अपनी पूरी आभा और दमक की ,
छटा बिखेरते हुए मुस्कुराओगे ,
नील गगन पर विचरते हुए ओ चंदा !
करवा चौथ वाले दिन भी इसी तरह ,
पूरे नियम से निकलोगे न ,है ना !
अपनी पूरी आभा और दमक के साथ,
नील गगन में अपनी छटा बिखेरते ,
हुए विचरोगे न ओ चंदा !
मगर मुझे मालूम है तुम अपनी ,
शरारत से बाज न आओगे ।
तुम अवश्य ही करवा चौथ वाले ,
दिन हम सब व्रतधारी सुहागनों को ,
तरसाओ ,तड़पाओगे ओ चंदा !
कभी बादलों से निकलोगे ,
और छुप जाओगे उनकी ओट में।
यूं ही लुका छिपी का खेल खेलते आए ,
तुम सदा की तरह अब भी यही करोगे।
हमसे आंख मिचौली का खेल ।
मुझे मालूम है तुम अपनी आदत से ,
बाज नहीं आओगे ओ चंदा !
ना जाने तुम्हें क्या मजा आता है !
हम भूखी सुहागनों को इंतजार करवाने में,
तुम्हें भला क्या सुख मिलता है।
यूं हमें तड़पाने में ।
हर बार कभी घर के बाहर तो कभी ,
सीढियों पर चढ़ते उतरते रहतीं है ।
छत और आंगन के चक्कर लगातीं है ।
जाने क्यों तुम्हें दया नहीं आती ओ चंदा !
तुम जब तक तुम्हारे दर्शन नहीं हो जाते ,
हम अन्न और जल ग्रहण नहीं कर पाते ।
तुम्हें अचानक देखकर ह्रदय प्रसन्न हो जाता है ,
फिर हम तुम्हारा पूजा अर्चन हैं कर पाते ।
फिर पतिदेव की पूजा कर उनके चरण छू कर ,
उनके हाथ से अन्न और जल ग्रहण कर पाते ।
तुमसे हमारी प्रार्थना है यूं न हमें प्रतीक्षा
तुम करवाया करो।
थोड़ा समय से निकल आया करो।
सदा सुहागन हेतु तुम्हीं से वरदान लेने वाली ,
तुम्हीं को दुआ देंगी ह्रदय से आभार प्रकट कर ,
ओ प्यारे चंदा !!