करवाचौथ
दे रही हूँ अर्घ्य हो स्वीकार मेरे चंद्रमा
प्रेम की इक डोर पकड़े कर रही हूँ परिक्रमा
चाँद से हम मांग लेंगे प्यार की लंबी उमर
तुम रहो प्रियतम मेरे और मैं तुम्हारी प्रियतमा
करती हूँ शृंगार पूरा अच्छा लगता है मुझे
रत्न हो अनमोल तुम ही हीरा पन्ना विद्रुमा
डूब जाना चाहती हूँ मैं तुम्हारे प्यार में
तुम समंदर हो मेरे तो मैं तुम्हारी रिद्धिमा
चाँद अक्षय रखना मेरे माँग के सिंदूर को
हो गई गर भूल कोई माँगती हूँ मैं क्षमा
‘अर्चना’ उपवास करवाचौथ बंधन है नहीं
प्यार की है ये कहानी प्यार का है तरजुमा
16-10-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद