करने दो इजहार मुझे भी
ल
करने दो इजहार मुझे भी,
बसे हैं जो अरमान,
मेरी आँखों में ख्वाब बनकर,
मेरे दिल में जान बनकर,
तस्वीर है वो मेरे कल की।
करने दो इजहार मुझे भी,
जान सकूं मैं भी यह,
कि महलों का सुख कैसा है,
फूलों की महक कैसी है,
शमा की रोशनी कैसी है,
आकाश का विस्तार कितना है।
करने दो इजहार मुझे भी,
मुझे ना बांधों जंजीरों से,
जब तुम हो मुक्त- उन्मुक्त,
या फिर बन्धे हो तुम,
किसी की भक्ति में सख्ती से,
उसकी वंदना करने के लिए।
करने दो इजहार मुझे,
बुरा न मानो मेरी बात का,
लिखा है जो मैंने काव्य में,
यह मेरी कलम की विशेषता है,
इल्जाम कुछ मत लगाओ तुम,
आखिर मैं भी कुछ सोचता हूँ।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)