करते हैं जब यत्न
नारियल के रेशों को बटकर, हम रस्सी मजबूत बनाते।
करते हैं जब यत्न तभी तो, पय से घी निकाल हम पाते।।
यत्न करें तो कुछ न असम्भव, कठिन काम भी कर लेते हैं।
कमी यत्न में रह जाए तो, दोष दूसरों को देते हैं।।
यत्न करें संकल्पवान बन, तो एवरेस्ट शिखर चढ़ जाते।
करते हैं जब यत्न तभी तो, पय से घी निकाल हम पाते।।
सिद्धि, सफलता हर मनुष्य की, अवलम्बित है यत्नों पर ही।
असफलता का कारण प्रायः, होता है मनुष्य का डर ही।।
यत्न करें यदि मनोयोग से, रत्न निकाल उदधि से लाते।
करते हैं जब यत्न तभी तो, पय से घी निकाल हम पाते।।
निर्भयता, विश्वास स्वयं पर, साथ यत्न के आवश्यक है।
धैर्यवान औ’ लगनशील जो, वह ही नवयुग का नायक है।।
हिम्मतवर मनुष्य निश्चय ही, अपना कीर्ति केतु फहराते।
करते हैं जब यत्न तभी तो, पय से घी निकाल हम पाते।।
निन्दा से, प्रवाद से डरकर, कर्मपंथ से कभी न भागें।
भला दूसरों का करने को, अपनी सुख-सुविधाएं त्यागें।।
ऐसे यत्नशील जन ही हर, इम्तिहान में अव्वल आते।
करते हैं जब यत्न तभी तो, पय से घी निकाल हम पाते।।
यत्न, युक्ति के द्वारा ही है, तिल से तेल निकाला जाता।
सर्कस में वनराज सिंह को, यत्नपूर्वक पाला जाता।।
यत्नशील को परमेश्वर भी, भवसागर से पार लगाते।
करते हैं जब यत्न तभी तो, पय से घी निकाल हम पाते।।
आओ हम सब यत्नशील बन, अपना भारत भव्य बनाएं।
कठिनाई का करें सामना, रह सचेष्ट कर्तव्य निभाएं।।
जो निष्काम कर्म करते हैं, भारतरत्न वही कहलाते।
करते हैं जब यत्न तभी तो, पय से घी निकाल हम पाते।।
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी