करतम सो भुगतम (कहानी)
ठाकुर शेर सिंह बड़े किसान थे, साथ साथ कई अवैध कारोबार शराब की भट्टी, ईंटों का भट्टा, अवैध रेत आदि आदि। गांव के बरसों से सरपंच थे, दबंग थे मजाल है कोई मुंह खोल सके। दरबार में मुनीम की पेशी थी मुनीमजी भट्टा कैसा चल रहा है? हुजूर कुछ मजदूर भाग गए हैं, इसलिए कुछ मंदी चल रही है। मूछों पर ताव देते हुए ठाकुर साहब ने कहा कैंसे भाग गए? हुजूर वो बुद्धा ने बरगला दिया है, बहुत प्रवचन देता है, सो शराब की भट्टी से भी आय कम हो गई है। कई मजदूरों की शराब छुड़वा चुका है, कईयों को काम पर शहर ले जाता है। कौन है बुद्धा? हुजूर पहले वह अपने भट्टे पर काम किया करता था, कोई साधु महात्मा के सत्संग में आकर सुधर गया है। शहर में काम करने जाता है, उसी ने हमारे कई मजदूरों को सुधार दिया है। ठाकुर साहब ने कहा आज उसे हमारे सामने पेश करो। शाम होते होते दो मुस्तंडे बुद्धा को पकड़ लाए। बुद्धा हाथ जोड़े खड़ा था। ठाकुर साहब का रौद्र रूप देखकर कांप उठा था। क्यों रे बुद्धा, ज्यादा होशियार बन गया है तू? तूने शराब कब से छोड़ दी? हुजूर 2 साल हो गए हैं, जबसे महाराज ने बताया है करतम सो भुगतम, यहीं करो यहीं भरो, यहीं स्वर्ग है, यहीं नरक है, हुजूर तब से मेरी आंखें खुल गई हैं। दिन रात काम करो फिर भी बच्चों का पेट नहीं भर पा रहा था। दिन रात जो काम करता था सारा शराब में उड़ा देता था। जब से छोड़ी है सब ठीक चल रहा है। अच्छा तू सुधर गया है, तो तूने सब को सुधारने का ठेका ले रखा है? नेता बन गया है तू? बड़ा धर्मात्मा बन गया है, कहां है रे कलुआ बल्ला पूजा तो करो इसकी। बुद्धा चरणों में गिर रहा था, कलुआ बल्ला बेरहमी से लात घूसों की बौछार कर रहे थे। बुद्धा की धर्मपत्नी कल्लो चीख चीख कर दया की भीख मांग रही थी। आखिर अधमरा कर बुद्धा को छोड़ दिया घावों पर हल्दी चूना लगाते हुए, कल्लो ने कहा अब हम इस गांव में नहीं रहेंगे यहां मिट्टी की झोपड़ी के अलावा हमारा है ही क्या? कुछ दिन के बाद बुद्धा पत्नी बच्चों के साथ शहर में आकर मेहनत मजदूरी कर पेट भरने लगा। सरकारी स्कूल में बच्चों को भर्ती कर दिया समय बीतने पर बच्चे भी पढ़ लिख गए। एक लड़का आसाराम पुलिस में भर्ती हो गया बुद्धा को अपनी मेहनत और धर्म पर चलने का फल मिल चुका था। 25 बरस हो गए थे उस खौफनाक बाकये के बाद बुद्धा कभी भी गांव नहीं लौटा। आने जाने वालों से गांव के हाल-चाल जरूर जान लेता था, सो एक दिन रामदीन भैया आए थे बचपन के मित्र थे, आज उन्हें घर पर ही रोक लिया, रात को सब के हाल-चाल पूछ रहे थे सोच ठाकुर के बारे में भी पूछ लिया, रामदीन भैया कहने लगे बुधराज भैया, तुम्हारी बानी बिल्कुल सत्य है भगवान के यहां देर है अंधेर नहीं तुम्हारी करतम सो भुगतम बाली बात सत्य है। आज ठाकुर अपनी करनी का फल भुगत रहा है, कुत्ते से भी बदतर जिंदगी जी रहा है, जमीन जायदाद बिक गई, ईंट भट्टा शराब भट्टी सब बंद हो चुके हैं। सरकार सख्त हो गई है बची हुई जमीन दोनों बेटों ने बांट ली, ठाकुर को लकवा मार गया है, ठकुराइन मर चुकी हैं, बहु बेटा कोई नहीं पूछता, पैसा नहीं है सो चमचे भी भाग गए, अब अकेला पड़ा पड़ा चिल्लाता है, करतम सो भुगतम।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी