करके तो कुछ दिखला ना
आना जाना आना जाना ,
करके तो कुछ दिखला ना
संघर्षों के सागर में अब
अपना परचम लहरा ना !
कई हार ‘हार के’ पहन भले
जीत के अब है दिखलाना ,
कोई कितना भी रोके तुम्हें
हार के आगे टिकना ना !
तुम वीर शिवा के वंशज हो
रणभूमि – डर से रुकना ना
फौलादी हो जिगरा ऐसा
दुश्मन के आगे झुकना ना !
कुछ पल का है यह जीवन रे
इस जीवन में कुछ कर जाना ,
कई सदियों से आना जाना
जीवन यू ना व्यर्थ गंवाना !
कोई सदा धरा पर अमर नहीं
कितना भी हो वह बलशाली,
वो ही निज जग में अमर रहे
कर गए जो यहाँ सदाचारी !
नित ज्ञान पथ पर चलता जा
तू अंधकार से लड़ता जा ,
भर – अंतर्मन में ज्वाला ऐसी
कहीं एक जगह पर टिकना ना !
लाख – चौरासी जन्म लिए
तब निज मानुस देह पाई है,
कुछ ऐसा करके जाना रे .
इतिहास धरा का बदलता जा !!
आना जाना आना जाना ,
करके तो कुछ दिखला ना
संघर्षों के सागर में अब
अपना परचम लहरा ना !
✍कवि दीपक सरल