कम है क्या
पहले से बेहतर हुए हैं ये हालात कम है क्या
आज मयस्सर हुई है ये जो रात कम है क्या
हमने तुझे मोहब्बत की देवी कह दिया है
तेरे जैसी खुदगर्ज के लिए ये बात कम है क्या
रकीब ने भी तेरे हुस्न के गुरुर की धज्जियां उड़ा कर रख दी
तुझे जो दिखाई है तेरी औकात कम है क्या
कई रातों तक आंसू नहीं खून टपका है मेरी आंखों से
फिर भी दुआ में ही निकले हैं मेरे अल्फाज कम है क्या
मेरा मुंह मत खुलवा वरना पोल खोल कर रख दूंगा तेरी
मैंने मन ही मन में संभाल रखें हैं कई जज्बात कम है क्या
वो जो कातिल है मेरे ख्वाबों का , अरमानों का , ख्वाइशों का , मोहब्बत का
उस जैसे इंसान से दूसरी मुलाकात कम है क्या