कमी
जिंदगी फिर एक
करवट ले रही है आज
सूखे फ़ूलों में भी है
ख्वाबों की सुगबुगाहट
अंकुरित हो रही है
मधु मालती की बेल
ज़िंदगी शायद फिर
खेल रही है खेल
पत्थरों में भी आई
हरी काई की सतह
नदिया भी उमड़
रही है सब जगह
उमंग तरंग में सब
चिड़िया भी चहक गयी
पर न जाने ज़िंदगी में
कौन सी कमी रह गयी