कमी
कमी :
×××××
भोजन की थाली कबसे सामने रखी थी पर खाना डालने का भी मन बिल्कुल नहीं था ।आज जो कुछ देखा था उसने भूख को मार दिया था ।न जाने कौन सी सोच हृदय को मथ रही थी ।
इसी सोच में सहसा स्टील की चमचमाती थाली में रमेश भाई साहब व उनकी पत्नी रमा जी के अक्स उभर आये ।देखते देखते दाल ,रायते व सब्जी के लिये साथ रखी छोटी चारों कटोरियां चार नन्हें बालकों के रूप में नजर आने लगी ।रमेश भाई साहब के चार बेटे ।
रमेश भाई व रमा भाभी सारे मोहल्ले के प्यारे ‘राम भैया ‘ व रमा भाभी थे ।दोनों अध्यापक ।रमेश भाई विज्ञान के व रमा भाभी गणित की ।जब हमारी D D A कालोनी नई नई बसी थी तो भैया व भाभी भी किश्तों पर मिले अपने 2 बेडरूम के फ्लैट में सपनों का आशियाना बनाने आ बसे थे ।
कुछ अजीब सी सोच थी दोनों की ।2 प्यारे प्यारे बेटों के होते हुए भी एक पुत्री की चाहत में आस-पास की छोटी बच्चियों पर ढेर प्यार लुटाते ।और न जाने क्यों और कैसी प्रबल थी ये चाहत कि इसके चक्कर में 2 बेटे और हो गये ।चौथे पुत्र के जन्म पर जब एक मित्र नें रमेश भाई को बधाई देते हुए कहा कि “रामायण की चौकड़ी पूरी हो गयी ” तो वह मुस्करा भर दिये थे ,एक फीकी सी मुस्कराहट ।
रमेश भैया व रमा भाभी ने बेटों के लालन पालन में कोई कसर नहीं छोड़ी ।खूब मेहनत की ।ट्यूशन पढाना शुरु कर दिया ।मेधावी व गरीब छात्रों को मुफ्त पढाते रहे ।उनके छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में झण्डे गाढने लगे ।बेटे भी पढाई में अच्छे रहे ।सभी अच्छी डिग्रियां लेकर उच्च पदों पर विराजमान हो गये ।सबसे बडा मल्टीनेशनल में India Manager तो उससे छोटा विदेशी बैंक में ,तीसरा डाक्टर तो चौथा IPS आफिसर ।
समय धीरे धीरे खिसकता रहा ।चारों बेटों की शादियां हो गयी ।रमेश भैया ने अपनी ही कालोनी में 200/200 गज के दो प्लाट खरीद कर दोमंजिले मकान बनवा दिये थे ।परन्तु सभी बेटे अपनी अपनी नौकरी और स्टेटस् के अनुसार रहने के लिये एक एक कर चले गये ।रह गये धीरे धीरे अपने ही बच्चों की बढती उपेक्षा के शिकार “राम भैया व रमा भाभी “।बच्चों को ,बहुओं को आने की फुर्सत नहीं थी और भैया भाभी का वहां दिल नहीं लगता था ।हकीकत तो यह थी कि बच्चों के पास जाने पर भी किसी को उनके साथ बतियाने का ,उनके पास बैठने का समय ही नहीं होता था ।और इसी उपेक्षा से टूटे पति पत्नी का अपने स्कूटर से डाक्टर के पास जाते हुए एक्सीडेन्ट हो गया और दोनो ही अनजान लम्बे सफर पर चले गये ।
खबर मिलते ही सभी बेटे परिवार सहित आ पहुंचे।चौथे वाले दिन ही “क्रिया “रस्म निपटा कर अगले दिन सभी का वापसी का प्रोग्राम निश्चित था । क्रिया वाले दिन सनातन धर्म मन्दिर के हाल को फूलों से सजा कर कालीन व कुर्सियां बिछवा दी गयी थी । उस दिन सभी भाईयों और उन के बच्चों ने एक जैसे डिजायनर सफेद कुर्ते पाजामे पहने थे ।बहुऐं भी हल्के रंग की मगर भारी महंगी साडियों में थी ।राम भैया व रमा भाभी को श्रद्धाजंलियां दी जा रही थी ।उन की स्कूटर एक्सीडेन्ट की मौत को उनकी सादगी कहा जा रहा था ।उनके फ्लैट में रहने को (यथार्थ में बेटों के साथ न रहने को )उनका अपने खरीदे हुए पहले फ्लैट से स्वाभाविक मोह कहा जा रहा था ………..
यानि कि……..
बेटों की हर कमी को मां-बाप के गुण बता कर ढाल के रूप में बखूबी प्रयोग किया जा रहा था ।रस्म पगडी की विडियो बन रही थी।रस्म समाप्त होते ही बेटे अपनी पगडी वाली फोटो मोबाईल के द्वारा फेस बुक पर अपडेट कर रहे थे ।पूरा का पूरा फोटो सेशन चल रहा था ।
इसी के साथ बार बार उपस्थित लोगों के लिये घोषणा कराई जा रही थी कि मन्दिर से सटे वातानुकूलित हाल में प्रसाद रूपी चायपान की व्यवस्था की गयी है ।सभी अवश्य ग्रहण कर के जाएं।प्रसाद रूपी जलपान में बस हलवा ,चाय ,काफी कोल्ड ड्रिंक ,जूस ,बिस्कुट , नमकीन ,समोसे ,मट्ठी वगैरह ही थे।
लोग खा पी रहे थे और चारों बेटे अपने अपने जानकार लोगों की आव भगत में जुटे थे ।शायद यह सुनिश्चित करने कि आज के कार्यक्रम की ज्यादा से ज्यादा वाहवाही बटोर सकें ।
बेहद घुटन सी महसूस हो रही थी ।बिना किसी को कुछ भी कहे मैं घर वापिस चला आया था और कुछ देर निष्चेष्ट पलंग पर पडा रहा था ।
अचानक मोबाइल की घंटी से तन्द्रा टूटी ।रमेश भैया के सबसे बडे बेटे का था ।उठाते ही उसने लगभग चहकते हुए पूछा “कोई कमी तो नहीं रही न अंकल ?”
“नहीं बेटा ,तुमने कोई कमी नहीं छोडी ।” न जाने किस प्रवाह में कह गया ।वाक्य अधूरा ही छूट गया ।उधर से फोन कट गया था ।कहना तो चाहता था कि:-
“कोई कमी नहीं छोडी थी दिखावे में ।कमी थी तो बस भावनाओं की ।कमी थी तो बस मां-बाप के प्रति श्रद्धा में ।कमी थी तो बस संस्कारों की ………. ”
पर मेरे अवचेतन ने मुझे रोक दिया था ।शायद इस डर से कि उसमें बसी उन दिंवगत आत्माओं की अदृश्य मूरत मेरे कारण आहत न हो
(स्वरचित )
अमृत सागर भाटिया