कमी हिम्मत में कुछ रखती नहीं मैं——- गज़ल
कमी हिम्मत में कुछ रखती नहीं मैं
बहुत टूटी मगर बिखरी नहीं मैं
बड़े दुख दर्द झेले जिंदगी में
मैं थकती हूँ मगर रुकती नहीं मैं
खरीदारों की कोई है कमी क्या
बिकूं इतनी भी तो सस्ती नहीं मैं-
रकीबों की रजा पर है खुशी अब
न आये वो मगर लडती नहीं मैं
बडे दिलकश फिजायें थी जहां में
लुभाया था मुझे भटकी नहीं मैं
मुहब्बत का न वो इजहार करता
मगर आँखों में क्यों पढती नहीं मैं
अगर चाहूँ फलक को भी गिरा लूं
बिना पर के मगर उड़ती नहीं मैं
थपेडे ज़िन्दगी के तोड़ देते
नहीं इतनी भी तो कच्ची नहीं मैं
मैं खुद की सोच पर चलती हूँ निर्मल
किसी के जाल में फंसती नहीं मैं