आज भी
दिल जो कल था अकेला,
ये अकेला रहा आज़ भी…!
बेबसी अनकही-अनसुनी,
हमसफ़र हर कदम आज़ भी…!
ख़्वाब यूं ही संवरते रहे,
और, बिखरे कई आज़ भी…!
रात भर जागते रह गये,
नींद आई नहीं आज़ भी…!
लोग आगे निकलते रहे,
हम हैं पीछे पड़े आज़ भी…!
जो न करना था बस वो किया,
क्यों बिलखता रहे ‘अभि’आज़ भी..!
© अभिषेक पाण्डेय अभि