कमजोर नहीं हूं मैं।
हर सुबह मेरा एक सपना होता है,
कभी दूसरों के लिए, कभी अपना होता है।
हर पल उनको पूरा करने की चाह होती है।
ना दिन की फिक्र ना रात की परवाह होती है।
जितना दिखता हूं, उतना कठोर नहीं हूं मैं,
फिर भी उतना कमजोर नहीं हूं मैं।
ऐसा भी नहीं की कभी गिरता नहीं हूं मैं,
किन्तु गिरकर भी रास्तों से डरता नहीं हूं मैं,
कोशिशें करना, कुछ ना करने से तो बेहतर है,
इसलिए खुद ही खुद में मरता नहीं हूं मैं,
बेशक ताकत से सराबोर नहीं हूं मैं,
फिर भी उतना कमजोर नहीं हूं मैं।
© अभिषेक पाण्डेय अभि