कभी हार कर भी तुम्हे पा लिया..
कभी हार कर भी तुम्हे पा लिया,
कभी जीत कर भी मुँह की खानी पड़ी
कभी अनहद फासलों से भी तुम मुझे ताकती रही,
कभी नजदीकियों से भी मुँह की खानी पड़ी
कभी चुप रहकर भी सब जता दिया,
कभी बोलकर भी मुँह की खानी पड़ी
कभी दूर रहकर भी प्रेम पनपता रहा,
कभी पास आकर भी मुँह की खानी पड़ी
कभी आखों में ही दर्द पढ़ लिया,
कभी पूछकर भी मुँह की खानी पड़ी.. .
© नीरज चौहान