कभी सोचा न था ( एक फौजी के पिता का दर्द ,)
कंधे पर तुझे रोज बैठाता था,
कभी कंधे पर उठाना पड़ेगा ,
यह कभी सोचा न था ।
मेरे लाडले वीर बेटे !
मैने तो अरमान पाला था ,
तेरे कंधों पर अंतिम सफर करने का ,
कभी तुझे अंतिम पढ़ाव तक पहुंचना होगा,
मैने कभी सोचा ही न था।
तू क्या गया मेरे बुढ़ापे की लाठी टूट गई ,
और रोते रोते आंखों से दिखना बंद हो गया,
अब यह जिंदगी की शाम तेरे सहारे बिन,
गुजारनी होगी ।
मैने कभी सोचा ही न था।
चलो! कोई बात नहीं ! मैं यह गम भी सह लूंगा ।
शायद मुझसे जायदा तुझ पर देश का अधिकार था,
मैं खुद को समझा लूंगा।
मुझे तुझ पर नाज है
जो कहना चाहता था तुझसे,
मगर कह न सका ।
मैं इतना मजबूर हो जाएंगे ,
मैने सोचा न था।