कभी मिलोगी तब सुनाऊँगा —- ✍️ मुन्ना मासूम
ख़ुश्क आँखों से अश्क़ बहते हैं।
तेरी चाहत है, हमसे कहते हैं।
धड़कता दिल है रोता सीने में।
जाऊँ मंदिर में या मदीने में।।
है तनहा ज़िन्दगी अज़ाब मेरी,
कब तलक ऐसे मैं जी पाऊँगा।
लिखा है दर्द दिल का पन्नों पर,
कभी मिलोगी तब सुनाऊँगा।
रोज़ आती हो तुम खयालों में।
हर जवाबों में हर सवालों में।
टूटता तन बदन तनहाई में।
याद आती हो हर अंगड़ाई में।
हर परछाईयों में तुम दिखती,
तड़प अपनी तुम्हें दिखाऊंगा।
लिखा है दर्द दिल का पन्नों पर,
कभी मिलोगी तब सुनाऊँगा।
फूल हँसते हैं देखकर मुझको।
उनको मैं रोज़ तोड़ा करता था।
सिर्फ़ हम दोनों को मिलाने को,
फूल अपनों को छोड़ा करता था।
दूर फूलों को करके अपनों से,
बताओ कैसे मैं सो पाऊँगा।
लिखा है दर्द दिल का पन्नों पर,
कभी मिलोगी तब सुनाऊँगा।
नज़रें रस्ता निहारा करती हैं।
सिर्फ तुमको पुकारा करती हैं।
तेरी आहट तो रोज़ आती है,
तू न आना गवारा करती है।
चाँद बेनूर है तुम्हारे बिन,
रात काली है , डगमगाऊँगा।
लिखा है दर्द दिल का पन्नों पर,
कभी मिलोगी तब सुनाऊँगा।
नींद आती नहीं है रातों में।
उलझा उलझा हूँ खुद की बातों में।
मुझ पर हुआ इख़्तियार तेरा,
तुझसे इन चन्द मुलाकातों में।।
आग दिल को जला रही अब तो
बिरह में मैं तो मर ही जाऊँगा।
लिखा है दर्द दिल का पन्नों पर,
कभी मिलोगी तब सुनाऊँगा।
सुबह कोई न अब जगाता है।
हाथ बालों में न फिराता है।
मेरी नज़रों में देखकर खुद को,
अब भला कौन मुस्कुराता है।
गुज़रे लमहें हैं बिखरे कमरे में,
तिनका तिनका ही अब उठाऊँगा।
लिखा है दर्द दिल का पन्नों पर,
कभी मिलोगी तब सुनाऊँगा।
रब से अरदास बन्द हो जाये।
बस तेरी आस बन्द हो जाये।
तुझसे मिल लूँगा आके जन्नत में,
बस मेरी साँस बन्द हो जाये।।
मुन्ना – मासूम है कलम तेरी,
कब तलक अब उसे रुलाऊँगा।
लिखा है दर्द दिल का पन्नों पर,
कभी मिलोगी तब सुनाऊँगा।
✍️ मुन्ना मासूम