कभी बादल गरजते हैं
कभी बादल गरजते हैं (गीतिका)
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कभी बादल गरजते हैं कभी बिजली चमकती है।
सुखद बौछार वर्षा की छमाछम रुक न सकती है।
मधुर अनुभूतियां कमनीय सा तन मन सिहर उठता।
अचानक बूंद शीतल सी बदन पर जब टपकती है।
अभी कुछ देर रुक जाओ जरा पानी बरसने दो।
बहुत आनन्द आएगा धरा सौंधी महकती है।
कभी उड़ते हवा से बात करते पाखियों के दल।
मगर नन्ही सी’ गौरैया घरों में ही चहकती है।
सुरीली तान कोयल की उठी है गूंज अमराई।
युवा मन प्यार की हर बात नयनों में छलकती है।
जगा है स्नेह मन में पास आना है जरूरी अब।
बिना कारण सुहाने वक्त में दूरी खटकती है।
उजाला चांदनी जैसा बिखर जाता दिशाओं में।
घटा जब जुल्फ की चितचोर मुखड़े से सरकती है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २६/०३/२०२१