कभी पास तो कभी दूर जाता है
बार बार ज़हन में ख्याल आता है।
कभी पास तो कभी दूर जाता है।
छूता है आकर बहुत करीब से,
और कभी यूँ ही गुज़र जाता है।
तन्हा मैं नही , तन्हा तो वो है,
आहिस्ते से जो मुझे बुलाता है।
कहता कुछ नही कभी एक लफ्ज़ भी,
रोता देख मुझे भी चुप कराता है।
समझ नही आता मिजाज उसका,
ज़ालिम होकर भी क्यों हँसाता है।
माना के असरार हैं उसमें कई,
तब भी हर दफा वो याद आता है।
बदल दी तबियत ‘मनी’ की उसने,
बस इसी बात पे वो इतराता है।
शिवम राव मणि