कभी दिल जी कुंडी खोल तो माही
कभी दिल की कुंडी खोल तो माही
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कभी दिल की कुंडी खोल तो माही,
कभी तो दुख सुख तोल तो माही।
घर मे भूखी प्यासी हूँ बैठी रहती,
बंद दर का ताला खोल तो माही।
घर की मुर्गी होती है दाल बराबर,
कभी बाहरी दाल डोल तो माही।
कहीं ओर खुशियाँ ढूँढते हो रहते,
कभी खुद के पर्दे खोल तो माही।
ज़ुबान तेरी का खो गया भरोसा,
जरा बात में मिश्री घोल तो माही।
बाल बच्चों की गठरी रोती रहती,
प्रेम पिटारी जरा खोल तो माही।
मनसीरत दिल से है रोता रहता,
खुल गई सारी तेरी पोल तो माही।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)