कभी तो फिर मिलो
कभी तो फिर मिलो
जैसे पहली बार मिले थे
वो मिलने की चाहत
मिलने पर मिली एक राहत
कल्पना में उकेरी तस्वीर तुम्हारी
मन ही मन लगी सवाल जवाब की झड़ी
इंतज़ार की हद तक हुआ तुम्हारा इंतज़ार
कभी तो फिर मिलो
जैसे पहली बार मिले थे
एक दूसरे को जानने की उत्सुकता
थोड़ा सा संकोच, थी थोड़ी भावुकता
जीवंत मंज़िल मिली सपना साकार हुआ
ख़त्म हुआ एक सच्चे साथी का इंतज़ार
कभी तो फिर मिलो
जैसे पहली बार मिले थे
सपने पलने लगे
उम्मीदें जगने लगी
खो गए एक दूसरे में ऐसे
चाय बेबसी से करती रही हमारा इंतज़ार
कभी तो फिर मिलो
जैसे पहली बार मिले थे
न अपेक्षा न ही उपेक्षा
सब कुछ नया नया
ज़िंदगी का एक नया मोड़
ज़िंदगी हसीन लगने लगी
अब था केवल साथ निभाने का इंतज़ार
कभी तो फिर मिलो
जैसे पहली बार मिले थे
सरल,सहज और सौम्य
थोड़े मौन थोड़े बातूनी, थोड़े हावी थोड़े प्रभावी
कुछ नम्र कुछ सख़्त, उथले भी,लिए कुछ गहराई
सहमे से लम्हें, सहमी सी मुलाक़ात
हर बात पर किया एक नई बात का इंतज़ार
कभी तो फिर मिलो
जैसे पहली बार मिले थे
डॉ दवीना अमर ठकराल’देविका’