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8 Feb 2018 · 1 min read

कभी जलते हैं हम

संध्या होते ही
रोज़ सुलगते हैं हम
चूल्हे के संग में।
रोटियों की तरह
कभी फूल जाते हैं
कभी जलते हैं हम ।

उन्हें तो मैं खा लेता हूँ
और मुझे समय ।
यह क्रम अनवरत्
चलता रहता है ।
कभी इच्छा से तो
कभी अनिच्छा से ।

दीपक चौबे ‘अंजान’

Language: Hindi
386 Views
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