कभी चाहो मुझे भी तुम
विधाता छंद
1222 1222 1222 1222
कभी चाहो मुझे भी तुम, कभी मेरे लिए सोचो ।
हमारा दिल बड़ा नाजुक ,इसे ऐसे नहीं नोचो।
बिखर कर टूट जाती हूँ, सँभल तुम बिन नहीं पाती।
गिरे जो आँख से मोती, उसे मैं गिन नहीं पाती।
दिया जो घाव तन मन पर, उसे मैं सिल नहीं पाती
मिलन की आश रहती है, मगर मैं मिल नहीं पाती।
मुझे अपना बनाकर भी,रहे दिल से पराये तुम।
जुदा हर स्वप्न था तेरा,नहीं मिल कर सजाये तुम
किया विषपान मीरा सा,सहे हर दर्द राधा सा।
सुबह की धुंध में लिपटी,मिला क्यों प्रेम आधा सा।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली