” कभी खेलते फाग ” !!
मकड़जाल में उलझे लागे ,
सबके अपने भाग !
खुशियां बैठी हैं मुँडेर पर ,
कोकिल कंठी राग !!
जीवन भर की दौड़ लगी है ,
भूले सुबहो शाम !
अपने अपने लक्ष्य सधे हैं ,
मिले ना पल विश्राम !
टूट टूट कर बिखरे सपने ,
कभी खेलते फाग !!
हँसी ठहाके , आँसूं पलते ,
हर मुट्ठी में राज़ !
मिला हाथ से , छूटा गर तो ,
बदले से अंदाज़ !
सुख दुख जैसे यहाँ बटोही ,
सबके अपने राग !!
पल पल जीना , पल पल मरना ,
आती जाती सांस !
सहने को सब कुछ सह जायें ,
कभी रुलाती फांस !
भले बुरे की करें विवेचन ,
अंतर मन की जाग !!
बृज व्यास