Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Mar 2023 · 1 min read

कभी किसी की मदद कर के देखना

कभी किसी की मदद कर के देखना
यकीन करो दिल को खुशी
और सुकून में पाओगे

1 Like · 2 Comments · 419 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from shabina. Naaz
View all
You may also like:
*आसमान से आग बरसती【बाल कविता/हिंदी गजल/गीतिका 】*
*आसमान से आग बरसती【बाल कविता/हिंदी गजल/गीतिका 】*
Ravi Prakash
तू है जगतजननी माँ दुर्गा
तू है जगतजननी माँ दुर्गा
gurudeenverma198
किताबे पढ़िए!!
किताबे पढ़िए!!
पूर्वार्थ
Quote...
Quote...
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मुक्तक
मुक्तक
Mahender Singh
तेवरी
तेवरी
कवि रमेशराज
अमृतकलश
अमृतकलश
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
हम जिसे प्यार करते हैं उसे शाप नहीं दे सकते
हम जिसे प्यार करते हैं उसे शाप नहीं दे सकते
DR ARUN KUMAR SHASTRI
न जाने क्यों ... ... ???
न जाने क्यों ... ... ???
Kanchan Khanna
उलझनें रूकती नहीं,
उलझनें रूकती नहीं,
Sunil Maheshwari
-- फिर हो गयी हत्या --
-- फिर हो गयी हत्या --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
हर राह मौहब्बत की आसान नहीं होती ।
हर राह मौहब्बत की आसान नहीं होती ।
Phool gufran
भारत चाँद पर छाया हैं…
भारत चाँद पर छाया हैं…
शांतिलाल सोनी
"जवाब"
Dr. Kishan tandon kranti
रूह बनकर उतरती है, रख लेता हूँ,
रूह बनकर उतरती है, रख लेता हूँ,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
मैं  तेरी  पनाहों   में  क़ज़ा  ढूंड  रही   हूँ ,
मैं तेरी पनाहों में क़ज़ा ढूंड रही हूँ ,
Neelofar Khan
स्वाधीनता के घाम से।
स्वाधीनता के घाम से।
Pt. Brajesh Kumar Nayak
वो मुझे पास लाना नही चाहता
वो मुझे पास लाना नही चाहता
कृष्णकांत गुर्जर
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
👗कैना👗
👗कैना👗
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
।।सावन म वैशाख नजर आवत हे।।
।।सावन म वैशाख नजर आवत हे।।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
अभिव्यक्ति के समुद्र में, मौत का सफर चल रहा है
अभिव्यक्ति के समुद्र में, मौत का सफर चल रहा है
प्रेमदास वसु सुरेखा
परछाईयों की भी कद्र करता हूँ
परछाईयों की भी कद्र करता हूँ
VINOD CHAUHAN
■ बेशर्म सियासत दिल्ली की।।
■ बेशर्म सियासत दिल्ली की।।
*प्रणय प्रभात*
नदी
नदी
नूरफातिमा खातून नूरी
बिखरे खुद को, जब भी समेट कर रखा, खुद के ताबूत से हीं, खुद को गवां कर गए।
बिखरे खुद को, जब भी समेट कर रखा, खुद के ताबूत से हीं, खुद को गवां कर गए।
Manisha Manjari
मेरे आदर्श मेरे पिता
मेरे आदर्श मेरे पिता
Dr. Man Mohan Krishna
संसार में
संसार में
Brijpal Singh
मौन धृतराष्ट्र बन कर खड़े हो
मौन धृतराष्ट्र बन कर खड़े हो
DrLakshman Jha Parimal
सोनेवानी के घनघोर जंगल
सोनेवानी के घनघोर जंगल
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
Loading...