कभी कभी
कभी कभी ये दिल करता है
यादें फिर से ताज़ा कर लूँ
कच्चे ज़ख्मों को फ़िर खुरचूं
चीज़ें फैंकुं , शीशा तोडूँ
दीवारों से सर टकराऊँ
घर के इक कोने में छुप कर
ज़ानों पर मैं सर को रख कर
आँखों से आंसू टपकाऊं
आह भरूँ और रोता जाऊँ
रोते रोते तुझे पुकारूँ
कभी कभी ये दिल करता है
वही पुरानी बुक फिर खुलूँ
जिस के अंदर तेरा इक ख़त रखा हुआ है।
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी