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24 Nov 2022 · 1 min read

कभी कभी मन रोता है

कभी-कभी मन रोटा है
*******************

कभी ना कभी मन रोता है,
औरों का बोझा ढोता है।

जागता रहता है दिन- रात,
कभी नहीं दो पल सोता है।

बोए शूल फूल उगते नहीं,
काटता वही जो बोता है।

पापों की गठरी बांध कर,
गंगा में जा कर धोता है।

मनसीरत मन कैद जैसे,
पिंजरे में बन्द तोता है।
******************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
69 Views
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